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Sunday, 29 November 2020

सिमरन की महिमा

सिमरन क्या है?
सिमरन अर्थ स्मरण जो हाथ पैरों से नहीं होता है, वर्ना दिव्यांग कभी नहीं कर पाते...
सिमरन ना ही आँखो से होता है, वर्ना सूरदास जी कभी नहीं कर पाते...
ना ही सिमरन बोलने से, सुनने से होता है वर्ना गूँगे बैहरे कभी नहीं कर पाते...
ना ही सिमरन धन और ताकत से होता है, वर्ना गरीब और कमजोर कभी नहीं कर पाते...
सिमरन केवल भाव से होता है, एक अहसास है सिमरन... जो हृदय में प्रस्फुटित होता है..
जो हृदय से होकर विचारों में आता है और हमारी आत्मा से जुड़ जाता है। हमारे आत्मा से संसार तक सुगंध फैलाता है... स्मरण भगवान से हम तक सिधा संबंध बनाता है...
सिमरन भाव का सच्चा सागर है... बस इस सागर में हमें डुबकी लगाना है... (कार्तिक महात्म्य)... 
सिमरन हम तभी कर सकते हैं जब हमारा चित्र शांत हो और हमारा मानसिक शांति का स्थान बहुत ऊंचा होगी उसी अवस्था में ही सिमरन करने का फायदा है यदि मन भटक रहे तो कोई भी व्यक्ति सिमरन नहीं कर सकता सिमरन के लिए ध्यान योग ही चाहिए

गुरुजी की सीख

क्रोध,गुस्सा, घृणा

एक शिक्षक अपने बच्चो से सवाल करता है,
अगर आपके पास 86,400 रुपये है और कोई भी लुटेरा 10 रुपये छिनकर भाग जाए तो आप क्या करेंगे?

क्या आप उसके पीछे भागकर लुटे हुवे 10 रुपये वापस पाने की कोशिश करोगे? या आप अपने बचे हुवे  86,390 को हिफाज़त से लेकर अपने रास्ते पर चलते रहेंगे?

कक्षा के कमरे में बहुमत ने कहा कि हम 10 रुपये की तुच्छ राशि की अनदेखी करते हुए अपने बचे हुवे पैसा लेकर अपने रास्ते पर चलते रहेंगे।*l

शिक्षक ने कहा: "आप लोगों का सत्य और अवलोकन सही नहीं है। मैंने देखा है कि ज्यादातर लोग 10 रुपये वापस लेने की फ़िक्र में चोर का पीछा करते हैं और परिणाम के रूप में, उनके बचे हुए 86,390 रुपये भी हाथ से धो बैठते हैं।

शिक्षक को देखते हुए छात्र हैरान होकर पूछने लगे "सर, यह असंभव है, ऐसा कौन करता है?"

शिक्षक ने कहा! "ये 86,400 वास्तव में हमारे दिन के सेकंड में से एक हैं।
 10 सेकंड की बात लेकर, या किसी भी 10 सेकंड की नाराज़गी और गुस्से में, हम बाकी के पुरे दिन को सोच,कुढ़न और जलने में गुज़ार देते हैं और हमारे बचे हुए 86,390 सेकंड भी नष्ट कर देते हैं।

चीज़ों को अनदेखा करें। ऐसा न हो कि  चन्द लम्हे का गुस्सा ,नकारात्मकता आपसे आपके सारे दिन की ताज़गी और खूबसूरती छीनकर ले जाए।
वाहेगुरु जी

Wednesday, 30 September 2020

ओम साईं राम

ओम् नमः शिवाय शिवजी सदा सहाय

गुरुजी को जीवन में धारण करने का तात्पर्य है कि आपने अपने जीवन को सफल बनाया है बिना गुरु के आपको जीवन में तरक्की और संतुष्टि प्राप्त नहीं हो सकती आप चाहे जितना दौड़ने गुरु आपको रास्ता बताता है गुरु आपको सन्मति देते हैं गुरु आपको संतुष्टि की तरह गुरु आपके ऊपर नियंत्रण रखता है कि आप कोई गलत कार्य ना करें गुरु का तात्पर्य है जीवन के अंदर सफलता प्राप्त करने के लिए एक ऐसी साधना जिसको हर कोई प्राप्त नहीं कर सकता है यदि ग्रुप बनाना है तो आपके अंदर सबसे पहले कपड़ा नहीं होना चाहिए जिसके मन में कपट होता है वह किसी को भी गुरु नहीं बना सकता है क्योंकि जिस तरह से मैंने गुरुजी को धारण किया है शायद यह मेरे जीवन का अनुभव है जिसको मैं गहराई से अनुभव कर सकता हूं जब तक मैं किसी भगवान किसी को किसी देवता को नहीं मानता था मुझे लगता था कि सारी दुनिया में यह चीजें पाखंड है लेकिन गुरु जी के आश्रम में जाने के बाद मुझे ऐसा महसूस हुआ कि जीवन में गुरु का होना अनिवार्य है गुरु शांति  देते हैं  गुरु आपको गलत काम करने से रोकता है गुरुजी आप की चिंताओं को मिटाता है गुरु अपने जीवन के अंदर पल पल में खुशियां देता रहता है गुरु जी आपको पल में वह दे सकते हैं जो आपको पूरे जीवन में नहीं मिला जिसके पीछे हम दौड़ते रहते हैं और अपना सारा जीवन खपा देते हैं गुरु जी को मानने वाले जीवन के अंदर उन चीजों को इतनी आसानी से प्राप्त कर लेते हैं कि उनको प्राप्त करने के बाद खुद भी हैरानी होती है कि क्या ऐसा संभव है कि बिना किसी चिंता और भय के उस कार्य को पूरा कर लिया।