सिमरन क्या है?
सिमरन अर्थ स्मरण जो हाथ पैरों से नहीं होता है, वर्ना दिव्यांग कभी नहीं कर पाते...
सिमरन ना ही आँखो से होता है, वर्ना सूरदास जी कभी नहीं कर पाते...
ना ही सिमरन बोलने से, सुनने से होता है वर्ना गूँगे बैहरे कभी नहीं कर पाते...
ना ही सिमरन धन और ताकत से होता है, वर्ना गरीब और कमजोर कभी नहीं कर पाते...
सिमरन केवल भाव से होता है, एक अहसास है सिमरन... जो हृदय में प्रस्फुटित होता है..
जो हृदय से होकर विचारों में आता है और हमारी आत्मा से जुड़ जाता है। हमारे आत्मा से संसार तक सुगंध फैलाता है... स्मरण भगवान से हम तक सिधा संबंध बनाता है...
सिमरन भाव का सच्चा सागर है... बस इस सागर में हमें डुबकी लगाना है... (कार्तिक महात्म्य)...
सिमरन हम तभी कर सकते हैं जब हमारा चित्र शांत हो और हमारा मानसिक शांति का स्थान बहुत ऊंचा होगी उसी अवस्था में ही सिमरन करने का फायदा है यदि मन भटक रहे तो कोई भी व्यक्ति सिमरन नहीं कर सकता सिमरन के लिए ध्यान योग ही चाहिए
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