JAI GURU JI जय गुरूजी ੴ
गुरु जी ने बताया किजै से सुनार से सोना, हीरे खरीदकर आते है चुप चाप मौन में सीधे सीधे घर आ जाते है कि किसी को भनक भी नहीं लगने देते की हम सोना खरीदकर आये है,ऐसे ही गुरु जी कहते है कि सत्संग से जब घर लौटे तो मौन में प्रभु का सुमिरन करते हुऐ लौटे क्योंकि ज्ञान के हीरे रूपी कीमती वचन लेकर जो आते है हम।
अपने घर से दूर कहीं जाते हो तो अपनी रसोई थोड़ी अपने साथ ले जाते हो,अपना हुनर भोजन बनाने का साथ लेकर जाते है,और भोजन बनाकर खा सकते है,ऐसे ही गुरु जी कहते है कि जहां भी जाएं अपना आनंद बनाने का हुनर साथ लेकर जाए,मतलब अपने आनंद का लड्डू खुद फोड़ो,खुद भी खाओ,सबको भी खिलाओ,।
अपना आनंद स्वयंम के अंदर ढूंढो,दूसरो में मत ढूंढो,तेरे अंदर माल खजाना न जा ढूंढन देश बेगाना।
ब्रह्म ज्ञान सुनकर बाहर के भरम खत्म करो,मतलब गुरु का ज्ञान सुनकर व्यर्थ की बातें छोड़ दो,।
सत्य के मार्ग पर चलना कठिन जरूर है,लेकिन असंभव नही,।
भगवान ने कभी नही कहा कि ये व्रत करो,वो व्रत करो,भगवान ने कहा सिर्फ अपना मन और बुद्धि मुझे दे दो।खुद को भूखा रखकर ,पैदल चलकर,,गंगा में डुबकी लगाकर कभी भी प्रभु प्रसन्न नही हो सकते,प्रभु तो तब खुश होते है जब हम अपना जीवन सतगुरु के बनाये नियमों अनुसार जियें।आज भी तेरा शुक्राना कल भी तेरा शुक्राना हर पल तेरा शुक्रानाज जयगुरुजी